मुझे कभी - कभी ये ख्याल आता है ,
की शायद कोई है जिसे मुझपर भी प्यार आता है,
मेरा हर ग़म उस को लगता है अपना,
और मेरी हर ख़ुशी पे उस को करार आता है,
फिर जाने क्यूँ वो कहने से डरती है,
ऐसा जाने क्या उस के मन में ख्याल आता है,
आँखों से अक्सर इकरार करती है,
क्यूँ होंठों पर हर बार इनकार आता है,
सोचता हूँ मैं ही कह दूं वो जो कह न सकी,
लेकिन फिर न सुन कर बिछरने का ख्याल आता है,
चलो अच्छा है हँसते हँसते ही हम चले जायेंगे,
की शायद कोई है जिसे मुझपर भी प्यार आता है ...
Wednesday, May 5, 2010
Saturday, July 25, 2009
Kumar Vishwas ki Kalam se..... Ek Pagli Ladki Ke Bin..
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं,
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घडियां टिक -टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से साड़ी यादें चुक जाती हैं,
जब उंच -नीच समझाने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है .
जब पोथे खली होते हैं , जब हर सवाली होते हैं ,
जब ग़ज़लें रास नहीं आती , अफसाने गाली होते हैं .
जब बासी फीकी धुप समेटें दिन जल्दी ढल जाता है ,
जब सूरज का लास्खर छत से गलियों में देर से जाता है ,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मनन ही मनन घुट जाती है ,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है ,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढने आ जाती है,
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है ,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है.
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुने देती है ,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो ,
क्या लिखते हो लल्ला दिनभर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं ,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है ,
जब भाभी हमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है ,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है.
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भइया तेरे जैसे प्यारे जस्बात नहीं ,
वोह पगली लड़की मेरे लिए नौ दिन भूकी रहती है,
चुप -चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी न कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा -बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा -कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भी मरना भी भरी लगता है
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसू के संग होते हैं,
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घडियां टिक -टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से साड़ी यादें चुक जाती हैं,
जब उंच -नीच समझाने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है .
जब पोथे खली होते हैं , जब हर सवाली होते हैं ,
जब ग़ज़लें रास नहीं आती , अफसाने गाली होते हैं .
जब बासी फीकी धुप समेटें दिन जल्दी ढल जाता है ,
जब सूरज का लास्खर छत से गलियों में देर से जाता है ,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मनन ही मनन घुट जाती है ,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है ,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढने आ जाती है,
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है ,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है.
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुने देती है ,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो ,
क्या लिखते हो लल्ला दिनभर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं ,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है ,
जब भाभी हमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है ,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है.
दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भइया तेरे जैसे प्यारे जस्बात नहीं ,
वोह पगली लड़की मेरे लिए नौ दिन भूकी रहती है,
चुप -चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी न कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा -बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा -कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भी मरना भी भरी लगता है
कितना प्यार है
उस ने कहा मुझ से कितना प्यार है...
मैं ने कहा सितारों का कोई शुमार नहीं
उस ने कहा की कौन तुम्हें है बहुत अज़ीज़ ?
मैं ने कहा , दिल पे जिस का इख्तियार है
उस ने कहा कौन सा तोहफा तुम्हें मैं दूँ ?
मैं ने कहा वही शाम जो अभी तक उधार है
उस ने कहा खिजां मैं मुलाक़ात का जवाज़...?
मैं ने कहा, कुर्ब का मतलब बहार है......
उस ने कहा सैकरों ग़म ज़िन्दगी मैं हैं
मैंने कहा ग़म नहीं, ग़म की मीठी फुहार है
उस ने कहा साथ कहाँ तक निभाओ गे...?
मैं ने कहा जितनी यह साँस की तार है ......
उस ने कहा मुझ को यकीन आए किस तरह..?
मैं ने कहा, नाम मेरा ऐतबार है....!!!
मैं ने कहा सितारों का कोई शुमार नहीं
उस ने कहा की कौन तुम्हें है बहुत अज़ीज़ ?
मैं ने कहा , दिल पे जिस का इख्तियार है
उस ने कहा कौन सा तोहफा तुम्हें मैं दूँ ?
मैं ने कहा वही शाम जो अभी तक उधार है
उस ने कहा खिजां मैं मुलाक़ात का जवाज़...?
मैं ने कहा, कुर्ब का मतलब बहार है......
उस ने कहा सैकरों ग़म ज़िन्दगी मैं हैं
मैंने कहा ग़म नहीं, ग़म की मीठी फुहार है
उस ने कहा साथ कहाँ तक निभाओ गे...?
मैं ने कहा जितनी यह साँस की तार है ......
उस ने कहा मुझ को यकीन आए किस तरह..?
मैं ने कहा, नाम मेरा ऐतबार है....!!!
Wednesday, July 22, 2009
जलती शमां का दौर होगा..... आज जल रहा हूँ मैं, कल कोई और होगा.....
बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्यूँ नही जाता,
जो बीत गया है वो , गुज़र क्यूँ नही जाता,
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नही जाता,
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यूँ नही जाता,
वो नाम है बरसों से, न चेहरा न बदन है,
वो ख्वाब अगर है तो, बिखर क्यूँ नही जाता
जो बीत गया है वो , गुज़र क्यूँ नही जाता,
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नही जाता,
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यूँ नही जाता,
वो नाम है बरसों से, न चेहरा न बदन है,
वो ख्वाब अगर है तो, बिखर क्यूँ नही जाता
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